चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को लेकर जागरूकता की कमी: वोटर्स की दिलचस्पी वार्ड पार्षद चुनने में ज्यादा, दूसरे चरण में ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद

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 *चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को लेकर जागरूकता की कमी: वोटर्स की दिलचस्पी वार्ड पार्षद चुनने में ज्यादा, दूसरे चरण में ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद*


प्रथम चरण में रविवार को बिहार के 37 जिलों के 156 नगरपालिकाओं में वोटिंग हुई। प्रथम चरण का चुनाव परिणाम 20 दिसंबर को आ गया। इस बार के नगर निकाय चुनाव की बड़ी खासियत यह थी कि चेयरमैन, वाइस चेयरमैन और वार्ड पार्षद तीनों को जनता ने वोट दिया है। इससे पहले जनता सिर्फ वार्ड पार्षद के लिए नगर निकाय में वोटिंग करती थी। इस बार सभी यानी तीनों पदों पर वोटिंग का अधिकार जनता को मिलने के बाद जनता की ताकत तो बढ़ी लेकिन चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के पद पर वोटिंग को लेकर लोगों में जागरूकता काफी कम दिखी। जो जागरूकता और दिलचस्पी अपने वार्ड के पार्षद को चुनने के लिए लोगों में दिखी वैसी जागरूकता और दिलचस्पी चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को चुनने में ज्यादातर जगहों पर नहीं रही। 28 दिसंबर को जहां दूसरे चरण की वोटिंग होनी है वहां के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को जनता की जागरूकता और दिलचस्पी का फायदा मिलने की उम्मीद है।




*चेयरमैन या वाइस चेयरमैन के वही उम्मीदवार पूरे शहर में घूम पाए जो समर्थ थे*


प्रथम चरण के उम्मीदवारों के पास प्रचार के लिए समय कम मिल पाया। वे नुक्कड़ सभा भी नहीं कर पाए। नतीजा यह हुआ कि चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के उम्मीदवार पूरे शहर के सभी वार्डों में ठीक से जा भी नहीं पाए। कुछ स्थानों पर जहां धन-बल से दबंग उम्मीदवार थे वहीं सभी जगह जा पाए क्योंकि उनके पास गाड़ियां थीं और कई वार्ड पार्षद भी उनके प्रभाव में थे। सच यह है कि प्रथम चरण में ज्यादातर वोटर्स को पता भी नहीं था कि चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के पद पर कौन खड़ा है और इनमें से बेहतर कौन है? नतीजा वोटर्स ने वार्ड पार्षद के लिए बटन को अपने तर्क के आधार पर दबाया, लेकिन बाकी दो सीटों चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के लिए तुक्केबाजी के तहत किसी को वोट दे आए।


*वोटर्स को जागरूक करने का अभियान ठीक से नहीं चला*


सबसे बड़ी बात यह कि निर्वाचन विभाग को चेयरमैन और वाइस चेयरमैन पद पर चुनाव के लिए वोटर्स में जैसी जागरूकता फैलायी जानी चाहिए था वह नहीं हुआ। कुछ स्थानों पर जहां शहर का काफी जाना-पहचाना चेहरा चेयरमैन या वाइस चेयरमैन पद पर खड़ा था उसे ही लोग जान पाए। शहर का बड़ा चेहरा या जाना पहचाना चेहरा हर जगह मिलना इसलिए मुश्किल रहा कि आरक्षण भी लागू रहा। यह जरूरी नहीं कि उस सीट पर शहर का जाना-पहचाना चेहरा आरक्षण के तहत वहां हो ही। नतीजा वैसे लोगों में से किसी एक को चेयरमैन और वाइस चेयरमैन चुनना लोगों के लिए मुश्किल था जिन्हें वे जानते -पहचानते ही नहीं थे! पूर्व बैंक कर्मी और सोशल एक्टिविस्ट रंजीत प्रसाद कहते हैं कि जहां पहले के जीते हुए चेयरमैन या वाइस चेयरमैन फिर से चुनाव हुआ


इस बार क्यों अलग रहा नगर निकाय का चुनाव नगर निकाय के चुनाव में जनता के हाथ पार्षदों के साथ-साथ चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को चुनने की भी ताकत मिली। तीन ईवीएम लगायी गईं और तीनों पर बटन दबाकर जनता ने अपना वार्ड पार्षद, चेयरमैन और वाइस चेयरमैन चुनने के लिए अलग-अलग बटन दबाया। इससे पहले जीते हुए वार्ड पार्षद चेयरमैन और वाइस चेयरमैन को चुनते थे। इसके लिए पार्षदों की खरीददारी पर्दे के पीछे से की जाती थी। उन्हें की तरह के प्रलोभन दिए जाते थे। बड़े होटलों में खाने-पीने की बेहतरीन व्यवस्था कर बंधक बना कर रखा जाता था। कई जगहों पर धार्मिक यात्राएं भी करायी जाती थीं। इस सब पर इस बार रोक लग गई। लेकिन कई स्थानों पर धन-बल से वोटर्स को प्रभावित करने की खबरें वार्ड पार्षद के पद से लेकर बाकी दोनों पदों के लिए भी आती रहीं।

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